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Startup Vs Small Business : स्टार्टअप बिज़नस एवं एक छोटे व्यवसाय के बीच क्या अंतर है?

    Startup Vs Small Business :

    स्टार्टअप बिज़नस एवं एक छोटे व्यवसाय के बीच क्या अंतर है?

    Difference Between Startup and Small Business in Hindi

    स्टार्टअप शुरू करें या छोटा बिजनस, पहले जान लीजिए दोनों में क्या होता है फर्क

    Startup Vs Small Business: स्टार्टअप (what is a startup) एक ऐसा बिजनस होता है, जो बिल्कुल ही यूनीक होता है। यानी ऐसा बिजनस, जो पहले से बाजार में नहीं हो। जैसे एयरबीएनबी, ओला, उबर, स्नैपचैट। वहीं छोटा बिजनस (what is a small business) कम पैसा लगाकर और कम लोगों के साथ शुरू किया जाता है। दोनों में बहुत कुछ कॉमन होता है, लेकिन तमाम अंतर (Difference Between Startup And Small Business) भी होते हैं।


    Startup vs business

    Startup Vs Small Business: स्टार्टअप शुरू करें या छोटा बिजनस, पहले जान लीजिए दोनों में क्या होता है फर्क


    Startup Vs Small Business: आए दिन आपको ये सुनने को मिलता होगा कि ये नया स्टार्टअप शुरू हुआ है, इस स्टार्टअप ने ये कर दिया... ऐसे में लोग इस बात से कनफ्यूज हो जाते हैं कि आखिर स्टार्टअप (what is a startup) और बिजनस में क्या फर्क है। बहुत से लोग तो ये भी समझते हैं कि बिजनस के शुरुआती दौर में उसे स्टार्टअप कहा जाता है। यानी जब बिजनस छोटा होता है और शुरुआती दौर में होता है तो उसे ही स्टार्टअप कहते हैं, लेकिन ऐसा है नहीं। बेशक स्टार्टअप और छोटे बिजनस (what is a small business) में बहुत कुछ कॉमन होता है, लेकिन यह दोनों ही अलग-अलग (Difference Between Startup And Small Business) होते हैं।


    स्टार्टअप बिज़नस एवं एक छोटे व्यवसाय दोनों ही एक बिज़नस की शुरुआती टर्म हैं. लेकिन आपको बता दें, कि दोनों में बहुत फर्क होता है. यदि आज के समय की बात की जाये तो किसी भी कार्य को नये तरीके एवं नए विचारों के साथ किया जाये, जिसके द्वारा लोगों की परेशानी आसानी से हल हो सके, तो वह स्टार्टअप होता है. लेकिन वहीँ यदि हम छोटे व्यवसाय की बात करें, तो यह कोई भी कार्य हो सकता है जिसे आप शुरु कर पैसे कमाते हैं. इन दोनों ही व्यवसाय के बीच के अंतर को आज हम लेख में विस्तार से आपको समझाने वाले हैं।


    SME (छोटा एवं मध्यम श्रेणी का बिजनेस) को बैंक और एनबीएफसी बिजनेस लोन मिलता है। जबकि एक स्टार्टअप को इन्वेस्टर्स के माध्यम से फंड प्राप्त होता है। स्टार्टअप और SME में यह एक बुनियादी अंतर हैं। यह अंतर क्यों है? स्टार्टअप क्या होता है? SME क्या होता है? आइये समझते हैं।




    क्या होता है छोटा बिजनस?

    स्मॉल मीडियम एंटरप्राइजेज़ (SME) क्या होता है?

    SME के तहत 2 बिजनेस आते हैं। स्माल एंटरप्राइज (लघु उद्योग) और मीडियम एंटरप्राइज (मध्यम उद्योग)। लॉकडाउन के समय MSME की परिभाषा में बदलाव किया गया था। SME के तहत आने वाले एंटरप्राइज की परिभाषा निम्न है:


    स्माल इंटरप्राइज की परिभाषा: 

    जिस उद्योग में 10 करोड़ रुपये तक का इन्वेस्टमेंट हो और 50 करोड़ रुपये तक का सालाना टर्नओवर होता है, उन्हें स्मॉल यूनिट एंटरप्राइज (लघु उद्योग) माना जाता है। यह परिभाषा मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस दोनों सेक्टर के लिए मान्य है।


    मीडियम एंटरप्राइज (मध्यम उद्योग) की परिभाषा:

    जिस उद्योग में 30 करोड़ रुपये तक का इन्वेस्टमेंट हो और 100 करोड़ रुपये तक का सालाना टर्नओवर होता है, उन्हें मीडियम एंटरप्राइज (मध्यम उद्योग) माना जाता है। यह परिभाषा मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस दोनों सेक्टर के लिए मान्य है।


    एसएमई का फुल फॉर्म स्मॉल मीडियम एंटरप्राइजेज़ (SME) है। SME में परम्परागत तरीके से चलने वाले सर्विस सेक्टर (सेवा क्षेत्र) और मैनुफैक्चरिंग सेक्टर ​(विनिनिर्माण क्षेत्र का) का बिजनेस आता है। SME क्षेत्र का बिजनेस मुख्यतः लाभ कमाने के उद्धेश्य से शुरु किया जाता है। स्मॉल मीडियम एंटरप्राइजेज़ (SME) शुरु होने के पहले दिन से मुनाफा प्रदान करने वाला हो सकता है।


    SME बिजनेस के पीछे किसी तरह का कोई इनोवेशन अप्रोच नहीं होता है बल्कि मार्केट की जरूरत और ग्राहकों की संख्या के आधार पर यह बिजनेस शुरु कर दिया जाता है। स्मॉल मीडियम एंटरप्राइजेज़ (SME) को आम बोल चाल की भाषा में छोटा बिजनेस, मध्यम श्रेणी का बिजनेस इत्यादि कहा जाता है।


    जैसा कि इसके नाम से ही साफ हो रहा है जब कोई शख्स एक बिजनस शुरू करता है तो शुरुआती दौर में वह छोटे बिजनस से शुरुआत करता है। यानी कम पैसा लगाकर और कम लोगों के साथ। यानी यह कंपनी हो सकती है या फिर पार्टनरशिप फर्म भी हो सकती है, लेकिन कम कर्मचारियों के साथ और छोटे सेल्स वॉल्यूम के साथ। शुरुआती दौर में बिजनस को बाजार की मांग के हिसाब से परखना जरूरी होता है, इसलिए छोटे बिजनस से शुरुआत की जाती है।




    स्टार्टअप क्या होता है?  What is a start-up?

    स्टार्टअप की परिभाषा

    ‘स्टार्टअप बिजनेस की एक इकाई है, किसी कंपनी को उसके रजिस्ट्रेशन से 10 साल तक स्टार्टअप माना जायेगा। कोई भी प्रौद्योगिकी टेक्नोलॉजी) या बौद्धिक सम्पदा से प्रेरित नये उत्पादों या सेवाओं के नवाचार (इनोवेशन), विकास (डेवलपमेंट), प्रविस्तारण (प्रोसेसिंग) या व्यवसायीकरण (कारोबार) की दिशा में काम करने वाली तब तक स्टार्टअप है तब तक उस कंपनी के किसी फाइनेंशियल ईयर का टर्नओवर 100 करोड़ से अधिक नहीं हो जाता है’।


    पुरे विश्व सहित भारत में स्टार्टअप एक नई अवधारणा (कांसेप्ट) है। यह परमपरागत बिजनेस से जरा अलग होता है और कुछ हद तक मेल भी खाता है। जी हां, इसमें दोनों क्वालिटी होती है। ‘स्टार्ट-अप’ की अवधारणा इनोवेशन (innovation) यानी नवीनता, नवपरिवर्तन, नयापन, नवोत्थान, नवीनीकरण के बुनियाद पर आधारित है। स्टार्टअप का लक्ष्य मार्केट में अपने प्रोडक्ट की स्थापना करना लंबे समय तक बाजार में जगह बनाएं रखना होता है।


    इसे आसान और सहज भाषा में समझिये कि जब किसी नये आइडिया पर बिजनेस शुरु किया जाता है तो वह स्टार्टअप कहलाता है। नया आइडिया से तात्पर्य यह है कि ‘बिजनेस करने का आइडिया यूनिक हो जिससे उपभोक्ता बेहतरीन अनुभव प्राप्त होता हो। साथ ही एक स्टार्टअप से यह उम्मीद की जाती है कि बिजनेस का आइडिया किसी का कॉपी किया हुआ नहीं होना चाहिए।


    बिजनस की दुनिया में ये नाम काफी तेजी से पॉपुलर हो गया है। दरअसल, स्टार्टअप एक ऐसा बिजनस होता है, जो बिल्कुल ही यूनीक होता है। यानी ऐसा बिजनस, जो पहले से बाजार में नहीं हो। जैसे एयरबीएनबी, ओला, उबर, स्नैपचैट जैसे बिजनस, पहल पहले से बाजार में नहीं थे, लेकिन कुछ लोगों की क्रिएटिव सोच ने इन्हें जन्म दिया। यानी स्टार्टअप वो बिजनस होता है, जो पहले से बाजार में नहीं होता है।



    स्टार्टअप बिज़नस एवं एक छोटे व्यवसाय के बीच अंतर

    जैसा कि इस आर्टिकल के शुरुवात में ही बताया गया है कि ‘स्टार्टअप’ बिजनेस का एक नया टर्म है, जो कि इनोवेशन (नवाचार) पर आधारित है। जिसका लक्ष्य लोगों की जरूरतों की नये तरीके से पूरा करना।


    SME परम्परागत तरीके से चलाए जाने वाला बिजनेस ही, जिसका मकसद है विशुद्ध रुप से मुनाफा कमाना। SME बिजनेस आपके गली में किराना दुकान चलाने वाला बिजनेसमैन हो सकता है और स्टील को पिघलाकर स्टील का बर्तन बनाने का उधमी भी हो सकता है। इसी के साथ स्टार्टअप और SME में बहुत सरे अंतर अंतर हैं। आइये समझते हैं।


    आप नीचे कुछ बिन्दुओं के आधार पर यह समझ सकते हैं, कि एक स्टार्टअप बिज़नस और एक छोटे व्यवसाय के बीच में वास्तव में क्या – क्या अंतर होता है, जोकि इस प्रकार है –



    रिस्क-

    स्टार्टअप बिल्कुल नया आइडिया होता है, तो इसके फेल होने का रिस्क भी बहुत अधिक होता है। जरूरी नहीं कि आइडिया नया है तो सबको पसंद ही आ जाए, लेकिन पंसद आ जाए तो स्टार्टअप रातों-रात एक बड़ी कंपनी बन सकते हैं, जिसका दायरा भी बहुत बड़ा हो सकता है। वहीं छोटे बिजनस में फेल होने का रिस्क कम होता है। हालांकि, उसमें कॉम्पटीशन बहुत होने की वजह से अचानक से कमाई बढ़ने का स्कोप कम होता है।



    नवीनीकरण (Innovations) :-

    छोटा बिजनस इस तरह का बिजनस होता है, जो पहले से ही बाजार में कोई कर रहा होता है। वहीं स्टार्टअप एक यूनीक आइडिया वाला बिजनस होता है, जो पहले से बाजार में कोई नहीं होता है।


    एक स्टार्टअप और एक छोटे व्यवसाय के बीच जो सबसे बड़ा एवं महत्वपूर्ण अंतर हैं वह यह है कि किसी भी उत्पाद या सर्विस का नवीनीकरण. छोटा व्यवसाय कोई भी रूप में हो सकता है, यह कोई विशेष होने का दावा नहीं करता है. आपका व्यवसाय कई व्यवसायों में से एक हो सकता है, जैसे हेयरड्रेसिंग सैलून, रेस्तौरेंट, लॉ ऑफिस, ब्लॉग या वीडियो ब्लॉग आदि. अतः सरल शब्दों में कहें तो छोटा व्यवसाय शुरू करना आसान काम होता है


    लेकिन जब हम स्टार्टअप की बात करते हैं, तो इसके लिए नवीनीकरण बहुत आवश्यक होता है. स्टार्टअप कुछ नया करने एवं पहले से मौजूद चीजों में सुधार कर उसे नये तरीके से करने के लिए होता है. उदाहरण के लिए कोई नया व्यवसाय मॉडल जोकि यूनिक हो या फिर कोई ऐसी तकनीक जिसे अभी तक कोई भी नहीं जानता वह स्टार्टअप होता है.



    व्यवसाय को बढ़ने की सम्भावनाये (Scopes) :-

    छोटा व्यवसाय एक व्यापारी द्वारा स्थापित होता हैं, जोकि एक सीमा के अंदर प्रगति करता है. यानि कि छोटे व्यवसाय एक सीमा के अंदर ही विकसित भी होते हैं और यह ग्राहकों के एक निश्चित दायरे में ही होता है. जबकि स्टार्टअप अपने विकास पर कोई सीमा नहीं रखता है. और यह जितना संभव हो उतना बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित करता है. अतः स्टार्टअप बिज़नस में आपकी यह कोशिश रहती है कि आप उसमें अग्रणी किस तरह बनें.



    वृद्धि की दर (Rate of growth) :-

    छोटा व्यवसाय निश्चित रूप से तेजी से बढता है, क्योकि इसमें प्राथमिता अधिक लाभ यानि पैसे कमाने को दी जाती है. और जब किसी व्यवसाय में लाभ ज्यादा मिलने लगता है, तो उसकी वृद्धि आवश्यक रूप से बढ़ने लगती है. जबकि स्टार्टअप में ऐसा नहीं होता. क्योकि स्टार्टअप का हमेशा विकास तो होता है, लेकिन स्टार्टअप के बिज़नस मॉडल को तैयार करने में समय लगता है. और मॉडल बन जाने के बाद इसे दुनिया भर में पेश करने में एवं सक्षम होने में भी समय लगता है. इसलिए इसकी वृद्धि की दर छोटे व्यवसाय की तुलना में कम होती है.



    लाभ या मुनाफा (profit Margine) :-

    चूंकि छोटे व्यवसाय में कमाई करने में ध्यान केन्द्रित होता है, इसलिए इसमें पहले दिन से ही लाभ प्राप्त होने लगता है. इसकी जगह हम स्टार्टअप के बारे में बात करें, तो स्टार्टअप के पहले सेंट को हासिल करने में कई महीने या साल भी लग सकते हैं. इसका मुख्य लक्ष्य उत्पाद बनाना या सर्विस देना है. इसे जितने उपभोक्ता पसंद करेंगे, उतना ही इसे बाजार में ले जाया जा सकेगा. जब यह लक्ष्य हासिल हो जायेगा, तब जाकर आपकी स्टार्टअप कंपनी को लाभ प्राप्त होगा, जोकि लाखों में हो सकता है. उदहारण के लिए, उबर कंपनी का वर्तमान इवैल्यूएशन 50 बिलियन डॉलर है.



    वित्त और निवेश (Investment and Finance) :-

    स्वयं के छोटे व्यवसाय को शुरू करने के लिए आमतौर पर आपको कुछ निवेश करना होता है. जैसे यदि आप कोई कंसलटेंट का व्यवसाय शुरू कर रहे हैं, तो आपको एक प्रिंटर, लैपटॉप, व्यवसाय कार्ड एवं एक वेबसाइट जैसी कुछ चीजों को आवश्यकता होती है. इसमें आपको किसी प्रोडक्ट या सर्विस को केवल वास्तविक आधार पर बेचते रहना होता है. इसलिए इसमें कुछ निश्चित वित्त की आवश्यकता होती है. जिसे आप आपनी निजी बचत, परिवार, दोस्तों, बैंकिंग क्रेडिट और कुछ निवेशक फण्ड की ओर से निवेश कर सकते हैं. हालाँकि आपका लक्ष्य आत्मनिर्भर होना होता है, तो आप उनसे यह ऋण के रूप में लेकर अपनी आवश्यकता पूरी कर सकते हैं, इसमें आपको चौकस भी रहना होता है, क्योंकि आपको एक दिन यह पैसा ब्याज के साथ वापस भी करना होता है. वहीं जब स्टार्टअप के रूप में आप शुरुआत करते हैं, तो आपको उसके निर्माण में समय तो लगता ही है, साथ में उसमें कुछ तकनीकों का इस्तेमाल होता है, जोकि महंगी होती है. और उपर से ग्राहकों को ढूँढना और ज्यादा मुश्किल काम हो जाता है. इन सभी चीजों के लिए आपको पहले से अपनी वित्तीय आवश्यकताओं को मजबूत करना होता है. क्योकि इसमें आपको अधिक खर्च की आवश्यकता हो सकती है, हालाँकि इसके लिए बाजार में कुछ निवेशक होते हैं, जो आपकी इसके लिए मदद कर सकते हैं.  



    फंडिंग-

    स्टार्टअप और SME में फंड जुटाने का अंतर

    स्मॉल मीडियम एंटरप्राइजेज़ (SME) हो या कोई स्टार्टअप, दोनों को ही चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है। जहां स्टार्टअप के लिए इन्वेस्टर्स के जरिये धन प्राप्त होता है। इसी के साथ सरकार द्वारा चलाई जा रही स्टार्टअप इंडिया द्वारा भी स्टार्टअप के लिए मिलता है। वहीं स्मॉल मीडियम एंटरप्राइजेज़ (SME) की शुरुवात खुद के धन की जाती है। हालांकि, सरकार द्वारा चलाई जा रहे मुद्रा लोन योजना के जरिये लोन मिलता है लेकिन बिजनेस शुरु करने के लिए अधिकांश धन खुद से लगाना होता है। हां, SME के साथ यह सुविधा है कि बिजनेस का जब विस्तार करना हो तो कई वित्तीय संस्थाओं से बिजनेस लोन बहुत आसानी से मिल जाता है। स्टार्टअप को वेंचर कैपिटल फर्म की तरफ से सपोर्ट मिल जाता है। हालांकि, इसके लिए पूरा प्लान दिखाना होता है और ये भी बताना होता है कि कैसे स्टार्टअप की कमाई बढ़ेगा और बाद में वह मुनाफे में तब्दील होना शुरू हो जाएगी। वहीं छोटे बिजनस के लिए पैसों का इंतजाम बैंक से या फिर कर्ज देने वाली अन्य कंपनियों से होता है। ऐसा बिजनस बाजार में पहले से ही होता है, इसलिए इसमें कमाई और मुनाफे को लेकर कोई प्लान नहीं देना होता है।



    तकनीकें (Technologies) :-

    एक छोटे व्यवसाय में किसी विशेष तकनीक की आवश्यकता नहीं होती है. कई आउट – ऑफ़ – द बॉक्स तकनीकी समाधान है, जिन्हें मुख्य व्यवसायिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए लागू किया जाता है. छोटे व्यवसाय में मार्केटिंग एवं अकाउंटेंट के समाधान आदि के क्षेत्र में तकनीकें होती है. जबकि स्टार्टअप की तकनीकें मुख्य रूप से उत्पाद होते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है, कि स्टार्टअप तेजी से विकास और पैमाने को प्राप्त करने के लिए नई तकनीकों का उपयोग करने में मदद नहीं कर सकता है.



    जीवन चक्र (Lifecycle) :-

    छोटे पैमाने में शुरू किये गये व्यवसाय में से 32 % उद्यम ऐसे होते हैं, जो अधिकतर पहले 3 वर्षों में बंद होते हैं, हालाँकि यह स्टार्टअप की तुलना में बुरा नहीं है. क्योकि स्टार्टअप पहले तीन वर्षों के दौरान लगभग 92 % उद्यम बंद कर देते हैं.



    टीम और मैनेजमेंट (Team and management) :-

    एक छोटे से व्यवसाय को आमतौर पर शुरुआत में अकेले ही शुरू किया जा सकता है, लेकिन कुछ समय बाद इसमें कुछ श्रमिकों को काम पर रखा जाता है, जबकि स्टार्टअप मैनेजर को शुरुआत से ही एक लीडर और मैनेजिंग गुणों का विकास करने के लिए कुछ लोगों की आवश्यकता होती है, ताकि जल्द से जल्द स्टार्टअप को बढ़ाया जा सके. जैसे ही कंपनी विकसित होने लगती है, आपको कर्मचारियों, निवेशकों, निदेशकों और अन्य संबंधित लोगों के साथ काम करने की जरुरत महसूस होती है.



    लाइफस्टाइल ( Way of life or Life Style) :-

    स्टार्टअप की तुलना में एक छोटा व्यवसाय जोखिम और कर्तव्यों से भरा होता है. जो इसे शुरू करता है, उसे काम और अपने व्यक्तिगत जीवन को कंबाइन करके काम करना होता है. एक व्यवसायी का जीवन में काम सुबह 9 से शाम 6 बजे तक होता है. प्रारंभ में व्यवसाय को उच्च प्रयासों की आवश्यकता होती है, लेकिन उन्हें समय के साथ काम और व्यक्तिगत जीवन के अनुपात को बैलेंस करना होता है. इसमें उतार चढ़ाव आ सकते हैं. जबकि स्टार्टअप में ऐसा नहीं होता है. इसमें निवेशकों के पैसे लगे हुए होते हैं, इसमें हारने का समय नहीं होता है. इसमें आपके आसपास के लोग इन्तजार करते हैं, कि कब आप कुछ अविश्वसनीय बना देंगे. इसलिए इसमें काम और निजी जीवन के बीच में बैलेंस करने का सवाल ही पैदा नहीं होता. इसमें केवल काम करो, काम करो और काम करते रहो.



    व्यवसाय का समापन (Exit strategy ) :-

    एक छोटा व्यवसाय पारिवारिक व्यवसाय भी बन सकता है, या इसे बेचा भी जा सकता है. लेकिन स्टार्टअप आमतौर पर बिक्री या आईपीओ (इनिशियल पब्लिक ओफ्फेरिंग) पर एक बड़े सौदे के माध्यम से अगले चरण की ओर बढ़ता है. किसी भी तरह से स्टार्टअप्स और छोटे व्यवसायों के बीच के अंतर को समझना और यह एहसास करना बहुत महत्वपूर्ण है कि आप सभी में सबसे अच्छा क्या है. ये दोनों ही अपनी अपनी जगह अच्छे हैं. इसे आप अपने हिसाब से शुरू कर सकते हैं



    स्टार्टअप और SME में मुनाफ़े का अंतर

    स्मॉल मीडियम एंटरप्राइजेज़ (SME) और स्टार्टअप में एक प्रमुख अंतर ‘मुनाफा’ होता है। किसी स्टार्टअप की स्थापना सर्वप्रथम किसी नवीन बिजनेस आइडिया को स्थापित करने के लिए होती है। बिजनेस के लिए नई अवधारणा की कल्पना की जाती है। मार्केट में बिजनेस को स्थापित किया जाता है फिर मुनाफा के बारें में सोचा जाता है। जबकि स्मॉल मीडियम एंटरप्राइजेज़ (SME) की स्थापना ही मुनाफ़े के लिए होती है। SME के तौर एक दुकान लगाने से लेकर कोई मीडियम स्तर का पावर प्लांट लगाने तक का आता है। इन सभी को स्थापित करने के पीछे मकसद यही होता है कि पहले दिन से ही मुनाफा होना शुरु हो जाये। ऐसा होता भी है। जबकि किसी स्टार्टअप के शुरुवात साल से मुनाफे की उम्मीद करना खुद की उम्मीदों पर पानी फेरने जैसा है।



    स्टार्टअप और SME में मैंन पावर का अंतर

    जैसा कि बताया गया है कि स्टार्टअप किसी नवीन बिजनेस आइडिया को मूर्त रुप देने का काम होता है। यह बहुत श्रम वाला और कई लोगों द्वारा संयुक्त रुप से किया जाने वाला काम होता है। स्टार्टअप चलाने के लिए एक साथ बहुत से लोगों की आवश्यकता होती है। लेकिन, स्मॉल मीडियम एंटरप्राइजेज़ (SME) के साथ ऐसा नहीं है। क्योंकि, SME में एक दुकान भी आ सकती और कोई मीडियम स्तर की फैक्ट्री भी। तो यहां आवश्यकता के अनुसार मैंन पवार लगाया जाता है। वैसे SME में में कोई व्यक्ति खुद अकेले भी काम करता सकता है और अपने जरूरत के मुताबिक मुनाफा निकाल सकता है। जबकि स्टार्टअप के साथ यह संभव नहीं है। क्योंकि स्टार्टअप कोई दुकान नहीं होता है लेकिन SME में दुकान हो सकता है।



    FAQ

    People also ask

    Q : स्टार्टअप और बिजनेस में क्या अंतर है?

    Ans: बिजनेस - खुद को वित्तीय तौर पर लाभ कमाने के उद्देश्य से अपनी सेवाएं देना ग्राहको को देना बिजनैस कहलाता हैं। स्टार्टअप - बिजनैस * नवीनकरण(innovation). यह सामान्य रूप से कमाई के साथ-साथ लोगो के जीवन पर प्रभाव डालने से हैं।


    Q : स्टार्ट अप का मतलब क्या होता है?

    Ans: स्टार्टअप किसी भी व्यापार के उस शुरुआती बिंदु या अवधि को कहा जाता है जब वह व्यापार विकसित होने के लिए तैयार हो रहा होता है। 


    स्टार्टअप एक युवा कंपनी है जिसकी स्थापना एक या एक से अधिक उद्यमियों द्वारा की जाती है, ताकि एक यूनिक उत्पाद या सर्विस विकसित की जा सके, और इसे बाजार में लाया जा सके.


    Q : स्टार्टअप योजना के लिए कौन सी कंपनियां पात्र है?

    Ans: आपकी एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी होनी चाहिए। आपकी कंपनी को उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग या DPIIT द्वारा मान्यता प्राप्त होनी चाहिए। आपको होना चाहिएनिवेश केवल निर्दिष्ट क्षेत्रों में और अचल संपत्तियों में नहीं।


    Q : स्टार्टअप की शुरुआत कैसे करें?

    Ans: खुद का पैसा: किसी स्टार्टअप को शुरू करने के लिए सबसे पहले खुद का पैसा लगाना होगा। यदि आपके पास पहले से कुछ पैसा है तो आप उस पैसे को अपने स्टार्टअप में निवेश कर सकते है। हम आपको बता दे की जब आप खुद का पैसा निवेश करेंगे तो ही कोई और आपके बिज़नेस में पैसा निवेश करेंगा। दोस्तों का पैसा: हम सभी के दोस्त होते हैं।


    Q : छोटा बिजनेस को बड़ा कैसे करें?

    Ans: बिजनेस को बड़ा बनाने के लिए सबसे जरूरी होता है कि लोग आपके प्रोडक्ट या फिर आपकी सर्विस को खरीद रहे हैं या नहीं. अगर वह आपके प्रोडक्ट या सर्विस को नहीं खरीद रहे हैं तो आप अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी या फिर अपनी सर्विस मैं इंप्रूवमेंट कीजिए जिससे लोग आपकी सर्विस या आपके प्रोडक्ट को पसंद कर सके


    Q : क्या छोटे व्यवसाय के लिए स्टार्टअप या स्टार्टअप के लिए छोटा व्यवसाय बनना संभव है ?

    Ans: हां, लेकिन यह सब कुछ व्यवसाय के मुखिया के फैसले पर निर्भर करता है. यह उनके इस बात पर भी निर्भर करता है कि क्या किसी कंपनी को किसी अन्य भूमिका में देखा जाना चाहिए. कभी – कभी कुछ बाहरी कारक जैसे उत्पाद की मांगों में बदलाव एवं बाजार की स्थिति आदि एक्सटर्नल फैक्टर्स भी होते हैं.


    Q : स्टार्टअप का मुख्य रूप से मतलब क्या है ?

    Ans: एक स्टार्टअप एक युवा कंपनी है जिसकी स्थापना एक या एक से अधिक उद्यमियों द्वारा की जाती है, ताकि एक यूनिक उत्पाद या सर्विस विकसित की जा सके, और इसे बाजार में लाया जा सके.


    Q : स्टार्टअप्स कितने प्रकार के होते हैं ?

    Ans: मुख्य रूप से स्टार्टअप्स 6 प्रकार के होते हैं लाइफस्टाइल स्टार्टअप, छोटा व्यवसाय स्टार्टअप, स्केलेबल स्टार्टअप, खरीदने योग्य स्टार्टअप, बड़ी कंपनी स्टार्टअप, सोशल स्टार्टअप.


    Q : स्टार्टअप कल्चर क्या है ?

    Ans: एक स्टार्टअप कल्चर एक वर्कप्लेस एनवायरनमेंट है जो रचनात्मक समस्या को सुलझाने, ओपन कम्युनिकेशन और एक फ्लैट हायरार्की को मह्त्व देता है.


    Q : भारत में सबसे सफल स्टार्टअप्स कौन से हैं ?

    Ans: भारत में सबसे सफल स्टार्टअप्स में फ्लिपकार्ट, स्नेपडील, ओला कैब्स, इनमोबी, म्यु सिग्मा, वन97 कम्युनिकेशन (पेटीएम), कुइकर एवं ज़ोमटो आदि शामिल है.

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